शीश गंगा बहाए अंग भ्रस्मी रमे न्यारी न्यारी
शोभा कहा तक करूँ शिव तुम्हारी
शीश पे चंद्र शेखर दमकता,
संग में सारा लोचन झलकता
धन्य है गोरा पति, धन्य है योगी पति
डमरू धारी, शोभा कहा तक करूँ शिव तुम्हारी
शीश गंगा बहाए अंग भ्रस्मी रमे न्यारी न्यारी
शोभा कहा तक करूँ शिव तुम्हारी
लिपटे रहते गले बिच्छू काले
पीते बिजिया के भर भर प्याले
पी धतूरा कली, मुण्ड माला डली
खन संहारी , शोभा कहा तक करूँ शिव तुम्हारी
शीश गंगा बहाए अंग भ्रस्मी रमे न्यारी न्यारी
शोभा कहा तक करूँ शिव तुम्हारी
पहनते बाघ की आप छाला
नाग कण फण्ड मुंडल है माला
करते सदा ध्यान है, राम गुणगान है
शिव लगाती ताली
शोभा कहा तक करूँ शिव तुम्हारी
शीश गंगा बहाए अंग भ्रस्मी रमे न्यारी न्यारी
शोभा कहा तक करूँ शिव तुम्हारी
ध्यान शिवजी का जो कोई लगावे
होकर अटल मोक्ष फल पावे
हाथ जोड के खड़ी ये अनाड़ी
शोभा कहा तक करूँ शिव तुम्हारी
शीश गंगा बहाए अंग भ्रस्मी रमे न्यारी न्यारी
शोभा कहा तक करूँ शिव तुम्हारी
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