सुहाग माता की कहानी

 पांच सहेलियों थी पांचों मंदिर में पूजा करने जाती, एक का दीपक बुझा जाता था, चार का दीपक जलता रहता | उसने अपनी माँ को बताया माँ मेरा दीपक बुझ जाता है, बेटी तू चिंता मत कर मैं तुझे आटे का दीपक बना कर दूंगी | अगले दिन मां ने आटे का दीया बना कर दिया, जब भी उसकी जोत बुझ गयी ई | मां अगले दिन पंडित जी के पास जाती और कहती मेरी बेटी का दीपक बुझ जाता है, कोई उपाय बताओ | इसका कोई उपाय नहीं है, इसके भाग्य में आधा सुहाग है, इसके उपाय गोरा मैया के पास मिल सकता है | मां अगले दिन गोरा मैया के पास जाती है, मैया के चरण पकड़ लेती है, मैया मेरी बेटी का दीपक बुझ जाता है कोई उपाय बताओ - मैया बोली इसका कोई उपाय नहीं है, इसके भाग्य में आधा सुहाग है, इसके पूर्व जन्मों का फल है, मैया बोली मैं तुम्हारे चरण नहीं छोडूंगी, जब तक कोई उपाय नहीं बताओ |


मैया बोली 40 दिन सुहाग माता की कहानी कहकर, पांच सुहाग के टिपारी बनाओ, एक सुहाग माता को अर्पण करो और चार सुहागनों को दो, उनको भी आगे ऐसा करने को कहो - तो तेरी बेटी का सुहाग पूरा हो जाएगा | बेटी ने ऐसा ही किया कहानी कही और उघापन किया और बेटी का सुहाग पूरा हो गया |


जैसे सुहाग माता उसके सुहाग पूरे करें वैसे सब कहे के करना कहते सुनते हुंकार भरते बोलो सुहाग माता की जय | 


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